Om Shanti
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कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

मनुष्य मत और परमपिता परमात्मा शिव की मत में महान अन्तर


मनुष्य मत और परमपिता परमात्मा शिव की मत में महान अन्तर

मनुष्यों ने जो अनेक प्रकार की मतें समाज को दी है और ज्ञान-सागर, पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव ने जो सर्व श्रेष्ठ मत अब दे रहे है, उनमे महान अन्तर है | उदाहरण के तौर पर मनुष्य मानते और कहते आये है कि परमात्मा सर्वव्यापक है, वह सर्प में, गाय में, बिच्छू में, पत्थर में, सागर और पर्वत में सब में है, परन्तु परमपिता परमात्मा अब समझा रहे है कि मैं इन सब में व्यापक नहीं हूँ बल्कि मैं ज्योतिस्वरूप, बिन्दु रूप हूँ और ब्रह्मलोक का वासी हौं | मनुष्य कहते आये है कि गीता ज्ञान विष्णु के साकार रूप श्री कृष्ण ने दिया परन्तु अब परमपिता परमात्मा समझा रहे है कि वास्तव में गीता ज्ञान ब्रह्मा-विष्णु- शंकर के भी रचयिता, राज्य भाग्य के अभोक्ता, ज्योतिबिंदु, सर्व आत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव ने दिया | इसी प्रकार मनुष्य कहते आये है कि कलियुग अभी दूध पीता बच्चा है परन्तु अब परमपिता परमात्मा शिव समझा रहे है कि कलियुग तो अब वृद्ध हो चूका है और मृत्यु शय्या पर है और उसका अभी बहुत थोड़ा ही समय शेष बचा है |

परमात्मा का दिव्य नाम और दिव्य रुप क्या है ?

मनुष्य क्या मानते और कहते आये हैं ?

मनुष्य कहते आये हैं कि परमात्मा नाम और रुप से न्यारा है क्योंकि नाम और रुप वाली चीजें आदि तथा अन्त वाली अर्थात विनाशी होती है जबकि परमात्मा अनादि और अविनाशी है । कोई भी रुप न होने के कारण ही ज्योति स्वरुप परमात्मा को निराकार कहा गया है ।


  अब परमपिता परमात्मा शिव क्या समझा रहे है?

परमपिता परमात्मा कहते है- वत्सो, नाम और रूप के बिना तो कोई भी सत्य वस्तु होती नहीं | अत: मुझ परमात्मा को नाम और रूप से न्यारा मानना तो गोया मुझ परमपिता को न मानना है | मुझ परमपिता को ‘निराकार’ कहने का यह अर्थ नहीं है कि मेरा कोई रूप या आकार है ही नहीं बल्कि ‘निराकार’ शब्द ‘साकार’ शब्द की तुलना में प्रयोग किया जाता है और उसका अर्थ यह है कि मेरा कोई शारीरिक या प्रकृतिकृत आकार नहीं है | वत्सो, जिन आत्माओं ने स्थूल शरीर धारण किया हुआ है, उन्हें साकार कहते है और जिन्होंने सूक्ष्म, प्रकाशमय काया धारण की हुई है उन्हें सुक्ष्मकारी अथवा देव रूप कहा जाता है, परन्तु चूँकी मेरी न कोई स्थूल काया है और न ही सूक्ष्म काया है, इसलिए मुझ ज्योतिस्वरुप परमात्मा को निराकार कहा जाता है | तो यद्यपि मेरा कोई शारीरिक रुप नहीं है तो भी मेरा निजी प्रकाशमय चैतन्य रुप ज्योति बिन्दू है जिस की याद में शिवलिंग नाम की प्रतिमाएँ बनी हुई है । मेरा ज्योर्तिमय बिन्दु रुप होने के कारण ही मुझे अव्यक्त मूर्त कहा जाता है ।

वत्सो, मेरा मुख्य नाम शिव है क्योंकि शिव का अर्थ कल्याणकारी है और मैं ही सभी का कल्याण करने वाला परमपिता हूँ और सभी को मुक्ति तथा जीवनमुक्ति और सुख तथा शान्ति देता हूँ । अत: मुझ परमपिता का कोई नाम ही न मानना एक बहुत बडी भूल करना है क्योंकि किसी वस्तू का नाम-निशान (रुप) न माना तो गोया उसके अस्तित्व को न मानना है ।

वत्सो, मेरा कोई सज्ञावाचक या शारीरिक नाम तो नहीं है परन्तु मुझ परमात्मा-स्वरुप का अनादि, गुणवाचक और सर्वश्रेष्ठ नाम शिव ही है, जिस नाम से कि मेरे गुणों तथा कर्तव्यों का तथा आत्माओं के साथ मेरे सम्बन्ध का परिचय मिल जाता है ।

वत्सों, मुझे बिना नाम, बिना रुप, बिना धाम और सर्वव्यापक मानने के कारण ही भक्ती-पूजा, ज्ञान- ध्यान, योग आदि सब नष्ट हो गए और सभी नर-नारी मुझसे विमुख हो गये है क्योंकि जब वे मेरा नाम-रुप-धाम ही नही मानते तो वे मन को किस पर टिकायें, वे याद किसकी करें, आत्मिक सम्बन्ध किससे जोंडे अथवा पूजा किसकी करें ? अत: इस एक भूल से भी भूलें शुरु हुई है और स्मृति-भंरश (योग-भ्रष्ट) होने के परिणाम स्वरुप ही सभी लोग धर्म-भ्रष्ट, कर्म-भ्रष्ट, पथ-भ्रष्ट और कौडी-तुल्य हो गये हैं तथा यह संसार नर्क बन गया है ।

वत्सों, यदि आज मनुष्य मेरे इस दिव्य एवं गुणवाचक नाम (शिव) को तथा मेरे दिव्य रुप (ज्योति बिन्दू) को जानकर मेरी स्मृति में स्थित होने का अभ्यास करे तो फिर से यहॉं भ्रष्टाचार का पूर्ण अन्त होकर सम्पूर्ण श्रेष्ठाचार की स्थापना हो सकती है और यह भारत देश स्वर्ग बन सकता है तथा यहॉं पुन: रामराज्य की स्थापना हो सकती है । वत्सो, यदि सभी नर-नारियों को यह मालूम होता कि परमपिता परमात्मा का नाम शिव और रुप ज्योतिर्लिंग है तो मुसलमान लोग भारत में शिव मन्दिरों को न लूटते और शिव प्रतिमाओं कोन तोडते बल्कि इसे परमपूज्य परमपिता की प्रतिमा मानकर, संसार के सभी लोग भारत को अपना परम तीर्थ मानते और इस प्रकार संसार का इतिहास ही बदल जाता क्योंकि सभी लोग स्वयं को शिव की संतान मानकर भाई-भाई की तरह से रहते !

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