Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

Points to Churn: August 26, 2013

Swamaan / Sankalp / Slogan: Swaroop Bano
August 26, 2013
हम आत्माएँ, स्व उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन सच्ची दिल से स्वयं को चेक कर सिर्फ़ बाप और स्वयं को देख, व्यर्थ को समाप्त करनेवाले समर्थ हैं...
We, the souls, check ourselves with an honest heart with accurate glasses for self progress, see only the Father and ourselves, finish waste and become powerful...
Hum atmaayen, sw unnati ka yathaarth chashma pahan sachchi dil se swayam ko chek kar sirf baap aur swayam ko dekh, vyarth ko samaapt karnewale Samarth hain...
Om Shanti Divine Angels!!!
Points to Churn: August 26, 2013
Points of Self Respect:
Slogan: Wear the accurate glasses of self progress and you will only see everyone’s specialities.
By imbibing the vision of only seeing specialties and by wearing glasses that only see specialties, we, the souls, look only at specialties while coming in connection and relationship with one another,...by seeing only the lotus and not the mud, we become instruments for the special task of world transformation...
We check ourselves with an honest heart with accurate glasses for self progress and see only the Father and ourselves...by having the only concern of having to change the self, we become examples for others and remain free from carelessness...

शान्ति दिव्य फरिश्ते !!!

 

विचार सागर मंथन: August 26,  2013

बाबा की महिमा : सभी का सद्गति दाता... दुर्भाग्यशाली से सौभाग्यशाली बनाने वाला बाप... सोमनाथ... ज्ञान का सागर... परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम सोल... जन्म-मरण रहित...निराकार... लिबेरटर... गाइड...
ज्ञान: शिव किसको कहा जाता है? आत्माओं के बाप को l आत्मा तो बिंदी है | आत्मा बड़ी-छोटी नहीं होती है l भ्रकुटी के बीच में वह छोटा सा स्टार हैं l तो कहेंगे मस्तकमणि, मस्तक में मणी है मणी आत्मा को कहा जाता है l आत्मा रूपी मणी प्रकाश करती है l वह भ्रकुटी के बीच में रहती है l
शिव के मन्दिर में शिवलिंग के साथ फिर सालिग्राम भी हैं l ऐसे नहीं, कृष्ण का वा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में सालिग्राम दिखाते हैं l तो सिद्ध होता है एक बाप के यह सब बच्चे हैं l आत्मा की भी पूजा होती है, तो देवताओं की भी पूजा होती है l रूद्र यज्ञ कहते हैं l बाप ने यह यज्ञ रचा है जीव आत्माओं द्वारा l
शिवबाबा कहते हैं मैं भी बहुत भारी सर्विस करता हूँ इसलिए पहले-पहले मेरी पूजा होती है l फिर जिन आत्माओं द्वारा सर्विस करता हूँ सारे विश्व को पवित्र बनता हूँ, उन्हों की भी पूजा जरुर होनी चाहिए l सबकी पूजा करते हैं l कम से कम लाख सालिग्राम बनाते हैं l
तुम्हारी आत्मा में भी झाड़ और चक्र की नॉलेज है lनम्बरवन सबसे पूज्य शिवबाबा आत्माओं का बाप है, जो तुमको बैठ ऐसा लायक बनाते हैं lतुम आत्माओं की पूजा होती है l
राम अर्थात् परमपिता परमात्मा | बाप आकर तुम्हारी सुख और शांति की मनोकामना पूरी करते हैं l
योग : याद भी उस एक को करना है... मैं स्वदर्शंचक्रधारी हूँ... बुद्धि को भटकाना नहीं है l
बाप कहते हैं तुम अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद करो l तुम असुल वहाँ के रहने वाले हो l अपने घर को याद करो...और कुछ न करो, सिर्फ बाप को याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे और तुम मेरे पास चले आयेंगे l ड्रामा पूरा होना है l सतो, रजो, तमो से पास होकर अभी सबको वापिस जाना है l
धारणा : तुम शांति चाहते हो तो इन आरगन्स से डिटैच हो जाओ, अपने स्वधर्म में टिको...
स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के बीच चमकती हुई मणि समझना है l स्वदर्शन चक्रधारी बनना है l
सेवा :पूज्य बनने के लिए विश्व को पावन बनाने की सेवा में मददगार बनो
उस बेहद के बाप का परिचय देना है l तुमको कितने बाप हैं? तुम किसको पुकारते हो? भगवान किसको कहते हो? कहेंगे गॉड फादर l तो जरुर दो फादर हैं l आत्मा याद करती है गॉड फादर को l तुम्हारी आत्मा भी है और शरीर भी है l शरीर का तो लौकिक बाप है l आत्मा का बाप कौन है? जिसको कहते हैं परमपिता परमात्मा l यह किसने और किसको पुकारा?
स्वमान : सौभाग्यशाली... स्वदर्शनचक्रधारी...
स्लोगन:-स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन लो तो सबकी विशेषतायें ही दिखाई देंगी।

हम आत्माएँ, एक दो के साथ सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हरेक की विशेषता देखने की दृष्टि धारण कर विशेषता को देखने के चश्मा पहन विशेषता को देखेनवाले, कीचड़ को न देख कमल को देख विश्व परिवर्तन के विशेष कार्य के निमित्त हैं...
स्व उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन सच्ची दिल से स्वयं को चेक कर सिर्फ़ बाप और स्वयं को देखनेवाले, खुद को बदलने की धून में रहकर दूसरों के लिए एक्साम्पल बननेवाले, अलबेलेपन मुक्त हैं...
Om Shanti divya farishte !!!
Vichaar Sagar Manthan: August 26, 2013
Swamaan aur Atma Abhyas
Slogan: Swa-unnati ka yathaarth chashma pahan lo to sabki visheshtayen hi dikhaai dengi.
Hum atmaayen, ek do ke saath sambandh va sampark men aate harek ki visheshta dekhne ki drishti dhaaran kar visheshta ko dekhne ke chashma pahan visheshta ko dekhenwale, kichad ko n dekh kamal ko dekh vishv parivartan ke vishesh kaary ke nimitt hain...
Hum atmaayen, sw unnati ka yathaarth chashma pahan sachchi dil se swayam ko chek kar sirf baap aur swayam ko dekhnewale, khud ko badal ne ki dhoon men rahkar doosron ke liye exampal ban newale, albelepan mukt hain...
Video of Murli Essence:
http://www.youtube.com/watch?v=sH_aEz5zrIg

Song:Mata o mata Song: Mother, O Mother, you are the Bestower of Fortune for the world!
गीत:- माता ओ माता.......http://www.youtube.com/watch?v=HCVnpRv7pZE
26-08-2013:
मुरली सार:-``मीठे बच्चे - बाप आये हैं सुख-शान्ति की मनोकामना पूरी करने, तुम शान्ति चाहते हो तो इन आरगन्स से डिटैच हो जाओ, अपने स्वधर्म में टिको''

प्रश्न:- पूज्य बनने का पुरूषार्थ क्या है? तुम्हारी पूजा क्यों होती है?

उत्तर:-पूज्य बनने के लिये विश्व को पावन बनाने की सेवा में मददगार बनो। जो जीव की आत्मायें बाप को मदद करती हैं उनकी बाप के साथ-साथ पूजा होती है। तुम बच्चे शिवबाबा के साथ सालिग्राम रूप में भी पूजे जाते हो, तो फिर साकार में लक्ष्मी-नारायण वा देवी-देवता के रूप में भी पूजे जाते हो। तुमने पूज्य और पुजारी के रहस्य को भी समझा है।

गीत:-माता माता........
 
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1)
स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के बीच चमकती हुई मणी समझना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
2)
अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव करना है। बुद्धि को भटकाना नहीं है। इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है।
 
वरदान:- अलौकिक स्वरूप की स्मृति द्वारा अलौकिक कर्म करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव

ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक, हीरे तुल्य अमूल्य जीवन। इस अलौकिक जीवन की स्मृति से वा अलौकिक स्वरूप में स्थित रहने से साधारण चलन, साधारण कर्म नहीं हो सकता। जो भी कर्म करेंगे वह अलौकिक ही होगा क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है। स्मृति में रहे एक बाप दूसरा कोई। तो बाप की स्मृति सदा समर्थ बना देगी इसलिए हर कर्म भी श्रेष्ठ, अलौकिक होगा।

स्लोगन:-स्व-उन्नति का यथार्थ चश्मा पहन लो तो सबकी विशेषतायें ही दिखाई देंगी।

 

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