Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

21-03-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन





21-03-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन



सार :-  “मीठे  बच्चे  -  यह  ज्ञान  तुम्हें  शीतल  बनाता  हैइस  ज्ञान  से  काम-क्रोध  की  आग  खत्म  हो जाती  हैभक्ति  से  वह  आग  खत्म  नहीं  होती
प्रश्न:- याद में मुख्य मेहनत कौन सी है?
उत्तर:- बाप की याद में बैठते समय देह भी याद न आये। आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत है। इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देह-अभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही देह की याद।


ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो याद के लिए एकान्त की बहुत जरूरत है। जितना तुम एकान्त वा शान्त में बाप की याद में रह सकते हो उतना झुण्ड में नहीं रह सकते हो। स्कूल में भी बच्चे पढ़ते हैं तो एकान्त में जाकर स्टडी करते हैं। इसमें भी एकान्त चाहिए। घूमने जाते हो तो उसमें भी याद की यात्रा मुख्य है। पढ़ाई तो बिल्कुल सहज है क्योंकि आधाकल्प माया का राज्य आने से ही तुम देह-अभिमानी बनते हो। पहला-पहला शत्रु है देह-अभिमान। बाप को याद करने के बदले देह को याद कर लेते हैं। इसको देह का अहंकार कहा जाता है। यहाँ तुम बच्चों को कहा जाता है आत्म-अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत लगती है। अब भक्ति तो छूटी। भक्ति होती ही है शरीर के साथ। तीर्थों आदि पर शरीर को ले जाना पड़ता है। दर्शन करना है, यह करना है। शरीर को जाना पड़े। यहाँ तुमको यही चिंतन करना है कि हम आत्मा हैं, हमको परमपिता परमात्मा बाप को याद करना है। बस जितना याद करेंगे तो पाप कट जायेंगे। भक्ति मार्ग में तो कभी पाप कटते नहीं हैं। कोई बुढ़े आदि होते हैं तो अन्दर में यह वहम होता है-हम भक्ति नहीं करेंगे तो नुकसान होगा, नास्तिक बन जायेंगे। भक्ति की जैसे आग लगी हुई है और ज्ञान में है शीतलता। इसमें काम क्रोध की आग खत्म हो जाती है। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितनी भावना रखते हैं, मेहनत करते हैं। समझो बद्रीनाथ पर गये, मूर्ति का साक्षात्कार हुआ फिर क्या! झट भावना बन जाती है, फिर बद्रीनाथ के सिवाए और कोई की याद बुद्धि में नहीं रहती। आगे तो पैदल जाते थे। बाप कहते हैं मैं अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देता हूँ, साक्षात्कार कराता हूँ। बाकी मैं इनसे मिलता नहीं हूँ। मेरे बिगर वर्सा थोड़ेही मिलेगा। वर्सा तो तुमको मेरे से ही मिलना है ना। यह तो सभी देहधारी हैं। वर्सा एक ही बाप रचता से मिलता है, बाकी जो भी हैं जड़ अथवा चैतन्य वह सारी है रचना। रचना से कभी वर्सा मिल न सके। पतित-पावन एक ही बाप है। कुमारियों को तो संगदोष से बहुत बचना है। बाप कहते हैं इस पतितपने से तुम आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाते हो। अभी सब हैं पतित। तुम्हें अभी पावन बनना है। निराकार बाप ही आकर तुमको पढ़ाते हैं। ऐसे कभी नहीं समझो कि ब्रह्मा पढ़ाते हैं। सबकी बुद्धि शिवबाबा तरफ रहनी चाहिए। शिवबाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम दादियों को भी पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनकी क्या खातिरी करेंगे! तुम शिवबाबा के लिए अंगूर आम ले आते हो, शिवबाबा कहते हैं-मैं तो अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों के लिए ही सब कुछ है। भक्तों ने भोग लगाया और बांटकर खाया। मैं थोड़ेही खाता हूँ। बाप कहते हैं मैं तो आता ही हूँ तुम बच्चों को पढ़ाकर पावन बनाने। पावन बनकर तुम इतना ऊंच पद पायेंगे। मेरा धन्धा यह है। कहते ही हैं शिव भगवानुवाच। ब्रह्मा भगवानुवाच तो कहते नहीं हैं। ब्रह्मा वाच भी नहीं कहते हैं। भल यह भी मुरली चलाते हैं परन्तु हमेशा समझो शिवबाबा चलाते हैं। किसी बच्चे को अच्छा तीर लगाना होगा तो खुद प्रवेश कर लेंगे। ज्ञान का तीर तीखा गाया जाता है ना। साइंस में भी कितनी पावर है। बॉम्बस आदि का कितना धमाका होता है। तुम कितनी साइलेन्स में रहते हो। साइंस पर साइलेन्स विजय पाती है।
तुम इस सृष्टि को पावन बनाते हो। पहले तो अपने को पावन बनाना है। ड्रामा अनुसार पावन भी बनना ही है, इसलिए विनाश भी नूँधा हुआ है। ड्रामा को समझ कर बहुत हर्षित रहना चाहिए। अभी हमको जाना है शान्तिधाम। बाप कहते हैं वह तुम्हारा घर है। घर में तो खुशी से जाना चाहिए ना। इसमें देही-अभिमानी बनने की बहुत मेहनत करनी है। इस याद की यात्रा पर ही बाबा बहुत जोर देते हैं, इसमें ही मेहनत है। बाप पूछते हैं चलते फिरते याद करना सहज है या एक जगह बैठकर याद करना सहज है? भक्ति मार्ग में भी कितनी माला फेरते हैं, राम-राम जपते रहते हैं। फायदा तो कुछ भी नहीं। बाप तो तुम बच्चों को बिल्कुल सहज युक्ति बतलाते हैं-भोजन बनाओ, कुछ भी करो, बाप को याद करो। भक्ति मार्ग में श्रीनाथ द्वारे में भोग बनाते हैं, मुँह को पट्टी बांध देते हैं। जरा भी आवाज न हो। वह है भक्ति मार्ग। तुमको तो बाप को याद करना है। वो लोग इतना भोग लगाते हैं फिर वह कोई खाते थोड़ेही हैं। पण्डे लोगों के कुटुम्ब होते हैं, वह खाते हैं। तुम यहाँ जानते हो हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। भक्ति में थोड़ेही यह समझते हैं कि हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। भल शिव पुराण बनाया है परन्तु उनमें शिव-पार्वती, शिव-शंकर सब मिला दिया है, वह पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता है। हर एक को अपना शास्त्र पढ़ना चाहिए। भारतवासियों की है एक गीता। क्रिश्चियन का बाइबिल एक होता है। देवी-देवता धर्म का शास्त्र है गीता। उसमें ही नॉलेज है। नॉलेज ही पढ़ी जाती है। तुमको नॉलेज पढ़नी है। लड़ाई आदि की बातें जिन किताबों में हैं, उससे तुम्हारा कोई काम ही नहीं है। हम हैं योगबल वाले फिर बाहुबल वालों की कहानियां क्यों सुनें! तुम्हारी वास्तव में लड़ाई है नहीं। तुम योगबल से 5 विकारों पर विजय पाते हो। तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से। वह तो मनुष्य, मनुष्य से लड़ाई करते हैं। तुम अपने विकारों से लड़ाई लड़ते हो। यह बातें सन्यासी आदि समझा न सकें। तुमको कोई ड्रिल आदि भी नहीं सिखलाई जाती है। तुम्हारी ड्रिल है ही एक। तुम्हारा है ही योगबल। याद के बल से 5 विकारों पर जीत पाते हो। यह 5 विकार दुश्मन हैं। उनमें भी नम्बरवन है देह-अभिमान। बाप कहते हैं तुम तो आत्मा हो ना। तुम आत्मा आती हो, आकर गर्भ में प्रवेश करती हो। मैं तो इस शरीर में विराजमान हुआ हूँ। मैं कोई गर्भ में थोड़ेही जाता हूँ। सतयुग में तुम गर्भ महल में रहते हो। फिर रावण राज्य में गर्भ जेल में जाते हो। मैं तो प्रवेश करता हूँ। इसको दिव्य जन्म कहा जाता है। ड्रामा अनुसार मुझे इसमें आना पड़ता है। इनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ क्योंकि मेरा बना है ना। एडाप्ट होते हैं तो नाम कितने अच्छे- अच्छे रखते हैं। तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे। लिस्ट बड़ी वन्डरफुल आई थी, सन्देशी द्वारा। बाबा को सब नाम थोड़ेही याद हैं। नाम से तो कोई काम नहीं। शरीर पर नाम रखा जाता है ना। अब तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। बस। तुम जानते हो हम पूज्य देवता बनते हैं फिर राज्य करेंगे। फिर भक्ति मार्ग में हमारे ही चित्र बनायेंगे। देवियों के बहुत चित्र बनाते हैं। आत्माओं की भी पूजा होती है। मिट्टी के सालिग्राम बनाते हैं फिर रात को तोड़ डालते हैं। देवियों को भी सजाकर, पूजा कर फिर समुद्र में डाल देते हैं। बाप कहते हैं मेरा भी रूप बनाकर, खिला पिलाकर फिर मुझे कह देते ठिक्कर-भित्तर में है। सबसे दुर्दशा तो मेरी करते हैं। तुम कितने गरीब बन गये हो। गरीब ही फिर ऊंच पद पाते हैं। साहूकार मुश्किल उठाते हैं। बाबा भी साहूकारों से इतना लेकर क्या करेंगे! यहाँ तो बच्चों के बूँद- बूँद से यह मकान आदि बनते हैं। कहते हैं बाबा हमारी एक ईट लगा दो। समझते हैं रिटर्न में हमको सोने-चांदी के महल मिलेंगे। वहाँ तो सोना ढेर रहता है। सोने की ईटें होगी तब तो मकान बनेंगे। तो बाप बहुत प्यार से कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, अब मुझे याद करो, अब नाटक पूरा होता है।
बाप गरीब बच्चों को साहूकार बनने की युक्ति बताते हैं-मीठे बच्चे, तुम्हारे पास जो कुछ भी है ट्रांसफर कर दो। यहाँ तो कुछ भी रहना नहीं है। यहाँ जो ट्रॉसफर करेंगे वह नई दुनिया में तुमको सौ गुणा होकर मिलेगा। बाबा कुछ मांगते नहीं हैं। वह तो दाता है, यह युक्ति बताई जाती है। यहाँ तो सब मिट्टी में मिल जाना है। कुछ ट्रॉसफर कर देंगे तो तुमको नई दुनिया में मिलेगा। इस पुरानी दुनिया के विनाश का समय है। यह कुछ भी काम में नहीं आयेगा इसलिए बाबा कहते हैं घर-घर में युनिवार्सिटी कम हॉस्पिटल खोलो जिससे हेल्थ और वेल्थ मिलेगी। यही मुख्य है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास 12-1-69
इस समय तुम गरीब साधारण मातायें पुरूषार्थ करके ऊंच पद पा लेती हो। यज्ञ में मदद आदि भी मातायें बहुत करती हैं, पुरूष बहुत थोड़े हैं जो मददगार बनते हैं। माताओं को वारिसपने का नशा नहीं रहता। वह बीज बोती रहती, अपना जीवन बनाती रहती। तुम्हारा ज्ञान है यथार्थ, बाकी है भक्ति। रूहानी बाप ही आकर ज्ञान देते हैं। बाप को समझें तो बाप से वर्सा जरूर लेवें। तुमको बाप पुरूषार्थ कराते रहते हैं, समझाते रहते हैं। टाइम वेस्ट मत करो। बाप जानते हैं कोई अच्छे पुरूषार्था हैं कोई मीडियम, कोई थर्ड। बाबा से पूछें तो बाबा झट बता दे - तुम फर्स्ट हो या सेकण्ड हो या थर्ड हो। किसको ज्ञान नहीं देते हो तो थर्ड क्लास ठहरे। सबूत नहीं देते तो बाबा जरूर कहेंगे ना। भगवान आकर जो ज्ञान सिखलाते हैं वो फिर प्राय:लोप हो जाता है। यह किसको भी पता नहीं है। ड्रामा के प्लैन अनुसार यह भक्ति मार्ग है, इनसे कोई मुझे प्राप्त कर नहीं सकता। सतयुग में कोई जा नहीं सकता। अभी तुम बच्चे पुरूषार्थ कर रहे हो। कल्प पहले मिसल जितना जिसने पुरूषार्थ किया है, उतना करते रहते हैं। बाप समझ सकते हैं अपना कल्याण कौन कर रहे हैं। बाप तो कहेंगे रोज इन लक्ष्मी नारायण के चित्र के आगे आकर बैठो। बाबा आपकी श्रीमत पर यह वर्सा हम जरूर लेंगे। आप समान बनाने की सार्विस का शौक जरूर चाहिए। सेन्टर्स वालों को भी लिखता हूँ, इतने वर्ष पढ़े हो किसको पढ़ा नहीं सकते हो तो बाकी पढ़े क्या हो! बच्चों की उन्नति तो करनी चाहिए ना। बुद्धि में सारा दिन सार्विस के ख्याल चलने चाहिए।
तुम वानप्रस्थी हो ना। वानप्रस्थियों के भी आश्रम होते हैं। वानप्रस्थियों के पास जाना चाहिए, मरने के पहले लक्ष्य तो बता दो। वाणी से परे तुम्हारी आत्मा जायेगी कैसे! पतित आत्मा तो जा न सके। भगवानुवाच मामेकम् याद करो तो तुम वानप्रस्थ में चले जायेंगे। बनारस में भी सार्विस ढेर है। बहुत साधु लोग काशीवास के लिये वहाँ रहते हैं, सारा दिन कहते रहते हैं शिव काशी विश्वनाथ गंगा। तुम्हारे अन्दर में सदैव खुशी की ताली बजती रहनी चाहिए। स्टूडेन्ट हो ना! सार्विस भी करते हैं, पढ़ते भी हैं। बाप को याद करना है, वर्सा लेना है। हम अब शिवबाबा के पास जाते हैं। यह मन्मनाभव है। परन्तु बहुतों को याद रहती नहीं है। झरमुई झगमुई करते रहते। मूल बात है याद की। याद ही खुशी में लायेगी। सभी चाहते तो हैं कि विश्व में शान्ति हो। बाबा भी कहते हैं उन्हें समझाओ कि विश्व में शान्ति अब स्थापन हो रही है, इसलिये बाबा लक्ष्मी- नारायण के चित्र को जास्ती महत्व देते हैं। बोलो, यह दुनिया स्थापन हो रही है, जहाँ सुख-शान्ति, पवित्रता सब था। सभी कहते हैं विश्व में शान्ति हो। प्राईज भी बहुतों को मिलती रहती है। वर्ल्ड में पीस स्थापन करने वाला तो मालिक होगा ना। इन्हों के राज्य में विश्व में शान्ति थी। एक भाषा, एक राज्य, एक धर्म था। बाकी सभी आत्मायें निराकारी दुनिया में थी। ऐसी दुनिया किसने स्थापन की थी! पीस किसने स्थापन की थी! फारेनर्स भी समझेंगे यह पैराडाइ॰ज था, इन्हों का राज्य था। वर्ल्ड में पीस तो अब स्थापन हो रही है। बाबा ने समझाया था प्रभात फेरी में भी यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र निकालो। जो सभी के कानों में आवाज पड़े कि यह राज्य स्थापन हो रहा है। नर्क का विनाश सामने खड़ा है। यह तो जानते हैं ड्रामा अनुसार शायद देरी है। बड़ो-बड़ों के तकदीर में अभी नहीं है। फिर भी बाबा पुरूषार्थ कराते रहते हैं। ड्रामा अनुसार सार्विस चल रही है। अच्छा। गुडनाईट।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


 धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।
2) ड्रामा को अच्छी तरह समझकर हर्षित रहना है। अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए ट्रांसफर करना है।

 
वरदान:- बीती  हुई  बातों  को  रहमदिल  बन  समाने  वाले  शुभचिंतक
भव!
यदि किसी की बीती हुई कमजोरी की बातें कोई सुनाये तो शुभ भावना से किनारा कर लो। व्यर्थ चिंतन या कमजोरी की बातें आपस में नहीं चलनी चाहिए। बीती हुई बातों को रहमदिल बनकर समा लो। समाकर शुभ भावना से उस आत्मा के प्रति मन्सा सेवा करते रहो। भले संस्कारों के वश कोई उल्टा कहता, करता या सुनता है तो उसे परिवर्तन करो। एक से दो तक, दो से तीन तक ऐसे व्यर्थ बातों की माला न हो जाए। ऐसा अटेन्शन रखना अर्थात् शुभचिंतक बनना।
स्लोगन:- सन्तुष्टमणि बनो तो प्रभु प्रिय, लोकप्रिय और स्वयंप्रिय बन जायेंगे।

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