Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

17-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन


17-04-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादा मधुबन

 

मीठे बच्चे - अब यह नाटक पूरा होता हैतुम्हें वापिस घर जाना हैइसलिए इस दुनिया से ममत्व मिटा दोघर को और नये राज्य को याद करो ।

 

प्रश्न:-दान का महत्व कब हैउसका रिटर्न किन बच्चों को प्राप्त होता है?

 

उत्तर:- दान का महत्व तब है जब दान की हुई चीज में ममत्व न हो। अगर दान किया फिर याद आया तो उसका फल रिटर्न में प्राप्त नहीं हो सकता। दान होता ही है दूसरे जन्म के लिए इसलिए इस जन्म में तुम्हारे पास जो कुछ है उससे ममत्व मिटा दो। ट्रस्टी होकर सम्भालो। यहाँ तुम जो ईश्वरीय सेवा में लगाते होहॉस्पिटल वा कॉलेज खोलते हो उससे अनेकों का कल्याण होता हैउसके रिटर्न में 21 जन्मों के लिए मिल जाता है।

 

ओम् शान्ति।

बच्चों को अपना घर और अपनी राजधानी याद हैयहाँ जब बैठते हो तो बाहर के घरघाट,धन्धे धोरी आदि के ख्यालात नहीं आने चाहिए। बस अपना घर ही याद आना है। अब इस पुरानी दुनिया से नई दुनिया में रिटर्न हैयह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जानी है। सब स्वाहा हो जायेगा आग में। जो कुछ इन ऑखों से देखते होमित्र सम्बन्धी आदि यह सब खत्म हो जाना है। यह ज्ञान बाप ही रूहों को समझाते हैं। बच्चोंअब वापिस अपने घर चलना है। नाटक पूरा होता है। यह है ही 5 हज़ार वर्ष का चक्र। दुनिया तो है हीपरन्तु उनको चक्र लगाने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। जो भी आत्मायें हैं सब वापस चली जायेंगी। यह पुरानी दुनिया ही खत्म हो जायेगी। बाबा बहुत अच्छी तरह हर एक बात समझाते हैं। कोई कोई मनहूस होते हैं तो मुफ्त अपनी जायदाद गँवा बैठते हैं। भक्ति मार्ग में दान पुण्य तो करते हैं ना। कोई ने धर्मशाला बनाईकोई ने हॉस्पिटल बनाईबुद्धि में समझते हैं इनका फल दूसरे जन्म में मिलेगा। बिगर कोई आशअनासक्त हो कोई करे ऐसा होता नहीं है। बहुत कहते हैं फल की चाहना हम नहीं रखते हैं। परन्तु नहींफल अवश्य मिलता है। समझो कोई के पास पैसा हैउनसे धर्माऊ दे दिया तो बुद्धि में यह रहेगा हमको दूसरे जन्म में मिलेगा। अगर ममत्व गयामेरी यह चीज़ है ऐसा समझा तो फिर वहाँ नहीं मिलेगा। दान होता ही है दूसरे जन्म के लिए। जबकि दूसरे जन्म में मिलता है तो फिर इस जन्म में ममत्व क्यों रखते,इसलिए ट्रस्टी बनाते हैं तो अपना ममत्व निकल जाए। कोई अच्छे साहूकार के घर में जन्म लेते हैं तो कहेंगे उसने अच्छे कर्म किये हैं। कोई राजा रानी के पास जन्म लेते हैंक्योंकि दान पुण्य किया है परन्तु वह है अल्पकाल एक जन्म की बात। अभी तो तुम यह पढ़ाई पढ़ते हो। जानते हो इस पढ़ाई से हमको यह बनना हैतो दैवीगुण धारण करना है। यहाँ दान जो करते हो उनसे यह रूहानी युनिवर्सिटीहॉस्पिटल खोलते हैं। दान किया तो फिर उनसे ममत्व मिटा देना चाहिए क्योंकि तुम जानते हो हम भविष्य 21 जन्म के लिए बाप से लेते हैं। यह बाप मकान आदि बनाते हैं। यह तो टैमप्रेरी है। नहीं तो इतने सब बच्चे कहाँ रहेंगे। देते हैं सब शिवबाबा को। धनी वह है। वह इनके द्वारा यह कराते हैं। शिवबाबा तो राज्य नहीं करता। खुद है ही दाता। उनका ममत्व किसमें होगा! अभी बाप श्रीमत देते हैं कि मौत सामने खड़ा है। आगे तुम किसको देते थे तो मौत की बात नहीं थी। अब बाबा आया है तो पुरानी दुनिया ही खत्म होनी है। बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ इस पतित दुनिया को खत्म करने। इस रुद्र यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है। जो कुछ अपना भविष्य बनायेंगे तो नई दुनिया में मिलेगा। नहीं तो यहाँ ही सब कुछ खत्म हो जायेगा। कोई न कोई खा जायेगा। आजकल मनुष्य उधार पर भी देते हैं। विनाश होगा तो सब खत्म हो जायेंगे। कोई किसको कुछ देगा नहीं। सब रह जायेगा। आज अच्छा हैकल देवाला निकाल देते। कोई को भी कुछ पैसा मिलने का नहीं है। कोई को दियावह मर गया फिर कौन बैठ रिटर्न करते हैं। तो क्या करना चाहिएभारत के 21 जन्मों के कल्याण लिए और फिर अपने 21 जन्मों के कल्याण के लिए उसमें लगा देना चाहिए। तुम अपने लिए ही करते हो। जानते हो श्रीमत पर हम ऊंच पद पाते हैंजिससे 21 जन्म सुख शान्ति मिलेगी। इनको कहा जाता है अविनाशी बाबा की रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटीजिससे हेल्थवेल्थ और हैप्पीनेस मिलती है। कोई को हेल्थ है,वेल्थ नहीं तो हैप्पीनेस रह नहीं सकती। दोनों हैं तो हैप्पी भी रहते हैं। बाप तुमको 21 जन्मों के लिए दोनों देते हैं। वो 21 जन्मों के लिए जमा करना है। बच्चों का काम है युक्ति रचना। बाप के आने से गरीब बच्चों की तकदीर खुल जाती है। बाप है ही गरीब निवाज़। साहूकारों की तकदीर में ही यह बातें नहीं हैं। इस समय भारत सबसे गरीब है। जो साहूकार था वही गरीब बना है। इस समय सब पाप आत्मायें हैं। जहाँ पुण्य आत्मा हैं वहाँ पाप आत्मा एक भी नहीं। वह है सतयुग सतोप्रधानयह है कलियुग तमोप्रधान। तुम अभी पुरुषार्थ कर रहे हो सतोप्रधान बनने का। बाप तुम बच्चों को स्मृति दिलाते हैं तो तुम समझते हो बरोबर हम ही स्वर्गवासी थे। फिर हमने 84 जन्म लिए हैं। बाकी 84 लाख योनियाँ तो गपोड़ा है। क्या इतना जन्म जानवर योनि में रहे! यह पिछाड़ी का मनुष्य का मर्तबा हैक्या अब वापिस जाना है?

अब बाप समझाते हैं मौत सामने खड़ा है। 40 50 हज़ार वर्ष हैं नहीं। मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं इसलिए कहा जाता है पत्थरबुद्धि। अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो। यह बातें कोई सन्यासी आदि थोड़ेही बता सकते हैं। अब तुमको बाप स्मृति दिलाते हैं कि वापिस जाना है। जितना हो सके अपना बैग बैगेज ट्रांसफर कर दो। बाबायह सब लोहम सतयुग में 21 जन्म लिए पा लेंगे। यह बाबा भी तो दान पुण्य करते थे। बहुत शौक था। व्यापारी लोग दो पैसा धर्माऊ निकालते हैं। बाबा एक आना निकालते थे। कोई भी आये तो दरवाजे से खाली न जाये। अभी भगवान सम्मुख आये हैंयह किसको पता नहीं है। मनुष्य दान पुण्य करते करते मर जायेंगे फिर कहाँ मिलेगापवित्र बनते नहींबाप से प्रीत रखते नहीं। बाप ने समझाया है यादव और कौरवों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि। पाण्डवों की है विनाश काले प्रीत बुद्धि। यूरोपवासी सब यादव हैं जो मूसल आदि निकालते रहते हैं। शास्त्रों में तो क्या क्या बातें लिख दी हैं। ढेर शास्त्र बने हुए हैंड्रामा प्लैन अनुसार। इसमें प्रेरणा आदि की बात नहीं। प्रेरणा माना विचार। बाकी ऐसे थोड़ेही बाप प्रेरणा से पढ़ाते हैं। बाप समझाते हैं यह भी एक व्यापारी था। अच्छा नाम था। सभी इज्ज़त देते थे। बाप ने प्रवेश किया और इसने गाली खाना शुरू कर दी। शिवबाबा को जानते नहीं। न उनको गाली दे सकते हैं। गाली यह खाते हैं। कृष्ण ने कहा ना मैं नहीं माखन खायो। यह भी कहते हैं काम तो सब कुछ बाबा का हैमैं कुछ नहीं करता हूँ। जादूगर वह हैमैं थोड़ेही हूँ। मुफ्त में इनको गाली दे देते हैं। हमने कोई को भगाया क्याकिसको भी नहीं कहा कि तुम भागकर आओ। हम तो वहाँ थेयह आपेही भाग आये। मुफ्त में दोष डाल दिया है। कितनी गाली खाई। क्या क्या बातें शास्त्रों में लिख दी हैं। बाप समझाते हैं यह फिर भी होगा। यह है सारी ज्ञान की बात। कोई मनुष्य यह थोड़ेही कर सकता है। सो भी ब्रिटिश गवर्नमेन्ट के राज्य में कोई के पास इतनी कन्यायें मातायें बैठ जाएं। कोई कुछ कर न सके। कोई के सम्बन्धी आते थे तो एकदम भगा देते थे। बाबा तो कहते थे भल इनको समझाकर ले जाओ। मैं कोई मना थोड़ेही करता हूँ परन्तु किसकी हिम्मत नहीं होती थी। बाप की ताकत थी ना। नथिंग न्यू। यह फिर भी सब होगा। गाली भी खानी पड़े। द्रौपदी की भी बात है। यह सब द्रौपदियां और दुशासन हैंएक की बात नहीं थी। शास्त्रों में यह गपोड़े किसने लिखेबाप कहते हैं यह भी ड्रामा में पार्ट है। आत्मा का ज्ञान ही कोई में नहीं हैबिल्कुल ही देह अभिमानी बन पड़े हैं। देही अभिमानी बनने में मेहनत है। रावण ने बिल्कुल ही उल्टा बना दिया है। अब बाप सुल्टा बनाते हैं।

देही अभिमानी बनने से स्वतः स्मृति रहती है कि हम आत्मा हैंयह देह बाजा हैबजाने लिए। यह स्मृति भी रहती तो दैवीगुण भी आते जाते हैं। तुम किसको दुःख भी नहीं दे सकते। भारत में ही इन लक्ष्मी नारायण का राज्य था। 5 हज़ार वर्ष की बात है। अगर कोई लाखों वर्ष कहते हैं तो घोर अन्धियारे में हैं। ड्रामा अनुसार जब समय पूरा हुआ है तब बाप फिर से आया है। अब बाप कहते हैं हमारी श्रीमत पर चलो। मौत सामने खड़ा है। फिर अन्दर की जो कुछ आश हैवह रह जायेगी। मरना तो है जरूर। यह वही महाभारत लड़ाई है। जितना अपना कल्याण कर सको उतना अच्छा है। नहीं तो तुम हाथ खाली जायेंगे। सारी दुनिया हाथ खाली जानी है। सिर्फ तुम बच्चे भरतू हाथ अर्थात् धनवान हो जाते हो। इसमें समझने की बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। कितने धर्म के मनुष्य हैं। हर एक की अपनी एक्ट चलती है। एक की एक्ट न मिले दूसरे से। सबके फीचर्स अपने अपने हैंकितने सारे फीचर्स हैंयह सब ड्रामा में नूँध है। वन्डरफुल बातें हैं ना। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। हम आत्मा 84 का चक्र लगाती हैंहम आत्मा इस ड्रामा में एक्टर हैंइनसे हम निकल नहीं सकतेमोक्ष पा नहीं सकते। फिर ट्राई करना भी फालतू है। बाप कहते हैं ड्रामा से कोई निकल जाएदूसरा कोई एड हो जाए यह हो नहीं सकता। इतना सारा ज्ञान सबकी बुद्धि में रह नहीं सकता। सारा दिन ऐसे ज्ञान में रमण करना है। एक घड़ी आधी घड़ी....... यह याद करो फिर उनको बढ़ाते जाओ। 8 घण्टा भल स्थूल सर्विस करोआराम भी करोइस रूहानी गवर्नमेन्ट की सर्विस में भी टाइम दो। तुम अपनी ही सर्विस करते होयह है मुख्य बात। याद की यात्रा में रहोबाकी ज्ञान से ऊंच पद पाना है। याद का अपना पूरा चार्ट रखो। ज्ञान तो सहज है। जैसे बाप की बुद्धि में है कि मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँइनके आदि मध्य अन्त को जानता हूँ। हम भी बाबा के बच्चे हैं। बाबा ने यह समझाया हैकैसे यह चक्र फिरता है। उस कमाई के लिए भी तुम 8-10 घण्टा देते हो ना। अच्छा ग्राहक मिल जाता है तो रात को कभी उबासी नहीं आती है। उबासी दी तो समझा जाता है कि यह थका हुआ है। बुद्धि कहाँ बाहर भटकती होगी। सेन्टर्स पर भी बड़ा खबरदार रहना है। जो बच्चे दूसरों का चिन्तन नहीं करते हैंअपनी पढ़ाई में ही मस्त रहते हैं उनकी उन्नति सदा होती रहती है। तुम्हें दूसरों का चिन्तन कर अपना पद भ्रष्ट नहीं करना है। हियर नो इविलसी नो इविल..... कोई अच्छा नहीं बोलता है तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो। हमेशा अपने को देखना चाहिएन कि दूसरों को। अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। बहुत ऐसे रूठ पड़ते हैं। आना बन्द कर देते हैंफिर आ जाते हैं। नहीं आयेंगे तो जायेंगे कहाँस्कूल तो एक ही है। अपने पैर पर कुल्हाड़ा नहीं लगाना है। तुम अपनी पढ़ाई में मस्त रहो। बहुत खुशी में रहो। भगवान पढ़ाते हैं बाकी क्या चाहिए। भगवान हमारा बाप,टीचरसतगुरू हैउनसे ही बुद्धि का योग लगाया जाता है। वह है सारी दुनिया का नम्बरवन माशूक जो तुमको नम्बरवन विश्व का मालिक बनाते हैं।

बाप कहते हैं तुम्हारी आत्मा बहुत पतित हैउड़ नहीं सकती। पंख कटे हुए हैं। रावण ने सभी आत्माओं के पंख काट दिये हैं। शिवबाबा कहते हैं मेरे बिगर कोई पावन बना नहीं सकता। सब एक्टर्स यहाँ हैंवृद्धि को पाते रहते हैंवापिस कोई जाते नहीं। अच्छा!

 

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) स्वयं के चिंतन और पढ़ाई में मस्त रहना है। दूसरों को नहीं देखना है। अगर कोई अच्छा नहीं बोलता है तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है। रूठ करके पढ़ाई नहीं छोड़नी है।

2) जीते जी सब कुछ दान करके अपना ममत्व मिटा देना है। पूरा विल कर ट्रस्टी बन हल्का रहना है। देही अभिमानी बन सर्व दैवीगुण धारण करने हैं।

 

वरदान:- बाप और सेवा की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षणमुक्त भव! 

 

जैसे सर्वेन्ट को सदा सेवा और मास्टर याद रहता है। ऐसे वर्ल्ड सर्वेन्टसच्चे सेवाधारी बच्चों को भी बाप और सेवा के सिवाए कुछ भी याद नहीं रहताइससे ही एकरस स्थिति में रहने का अनुभव होता है। उन्हें एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगते हैं। एक बाप के रस का अनुभव होने के कारण कहाँ भी आकर्षण नहीं जा सकतीयह एकरस स्थिति का तीव्र पुरूषार्थ ही सर्व आकर्षणों से मुक्त बना देता है। यही श्रेष्ठ मंजिल है।

 

स्लोगन:-नाज़ुक परिस्थितियों के पेपर में पास होना है तो अपनी नेचर को शक्तिशाली बनाओ। 

 

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