Om Shanti
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कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

20-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन


20-05-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति बापदादामधुबन
 

``मीठे बच्चे - तुम्हें नशा रहना चाहिए कि जिस शिव की सभी पूजा करते हैं, वह अभी हमारा बाप बना है, हम उनके सम्मुख बैठे हैं"   

प्रश्न:- मनुष्य भगवान से क्षमा क्यों मांगते हैं? क्या उन्हें क्षमा मिलती है?

उत्तर:- मनुष्य समझते हैं हमने जो पाप कर्म किये हैं उसकी सज़ा भगवान धर्मराज से दिलायेंगे, इसलिए क्षमा मांगते हैं। लेकिन उन्हें अपने कर्मों की सज़ा कर्मभोग के रूप में भोगनी ही पड़ती, भगवान उन्हें कोई दवाई नहीं देता। गर्भजेल में भी सज़ायें भोगनी है, साक्षात्कार होता है कि तुमने यह-यह किया है। ईश्वरीय डायरेक्शन पर नहीं चले हो इसलिए यह सज़ा है।

गीत:- तूने रात गंवाई......... 

ओम् शान्ति।

यह किसने कहा? रूहानी बाप ने कहा। वह है ऊंच ते ऊंच। सभी मनुष्यों से भी, सभी आत्माओं से भी ऊंच। सबमें आत्मा ही है ना। शरीर तो पार्ट बजाने के लिए मिला है। अभी तुम देखते हो सन्यासियों आदि के शरीर का भी कितना मान होता है। अपने गुरूओं आदि की कितनी महिमा करते हैं। यह बेहद का बाप तो गुप्त है। तुम बच्चे समझते हो शिवबाबा ऊंच ते ऊंच है, उनसे ऊंच कोई है नहीं। धर्मराज भी उनके साथ है क्योंकि भक्तिमार्ग में क्षमा मांगते हैं-हे भगवान क्षमा करना। अब भगवान क्या करेंगे! यहाँ गवर्मेन्ट तो जेल में डालेगी। वह धर्मराज गर्भजेल में दन्ड देते हैं। भोगना भी भोगनी पड़ती है, जिसको कर्मभोग कहा जाता है। अभी तुम जानते हो कर्मभोग कौन भोगते हैं? क्या होता है? कहते हैं-हे प्रभु क्षमा करो। दु:ख हरो, सुख दो। अब भगवान कोई दवाई करते हैं क्या? वह तो कुछ कर न सके। तब भगवान को क्यों कहते हैं? क्योंकि भगवान के साथ फिर धर्मराज भी है। बुरा काम करने से जरूर भोगना पड़ता है। गर्भजेल में सज़ा भी मिलती है। साक्षात्कार सब होते हैं। बिगर साक्षात्कार सज़ा नहीं मिलती। गर्भजेल में तो कोई दवाई आदि नहीं है। वहाँ सज़ा भोगनी पड़ती है। जब दु:खी होते हैं तब कहते हैं भगवान इस जेल से निकालो।

अभी तुम बच्चे किसके सामने बैठे हो? ऊंच ते ऊंच बाप है, परन्तु है गुप्त। और सभी के तो शरीर देखने में आते हैं, यहाँ शिवबाबा को तो अपना हाथ-पांव आदि है नहीं। फूल आदि भी कौन लेंगे? इनके हाथ से ही लेना होगा, अगर चाहें तो। परन्तु कोई से भी लेते नहीं। जैसे वह शंकराचार्य कहते हैं हमको कोई छुए नहीं। तो बाप कहते हैं हम पतितों का कुछ भी कैसे लेंगे। हमको फूल आदि की दरकार नहीं। भक्ति मार्ग में सोमनाथ आदि के मन्दिर बनते हैं, फूल चढ़ाते हैं। परन्तु मुझे तो शरीर है नहीं। आत्मा को कोई छुयेगा कैसे! कहते हैं हम पतितों से फूल कैसे लेवें! कोई हाथ भी नहीं लगा सकते। पतितों को छूने भी न दें। आज बाबाकहते कल फिर जाकर नर्कवासी बनते हैं। ऐसे को तो देखें भी नहीं। बाप कहते हैं-मैं तो ऊंच ते ऊंच हूँ। इन सब सन्यासियों आदि का भी ड्रामा अनुसार उद्धार करना है। मुझे कोई जानता ही नहीं। शिव की पूजा करते हैं परन्तु उनको जानते थोड़ेही हैं कि यह गीता का भगवान है और यहाँ आकर ज्ञान देते हैं। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। कृष्ण ने ज्ञान दिया बाकी शिव क्या करते होंगे! तो मनुष्य समझते हैं वह आते ही नहीं। अरे, पतित- पावन कृष्ण को थोड़ेही कहेंगे। पतित-पावन तो मुझे कहते हैं ना। तुम्हारे में भी कोई थोड़े हैं जो इतना रिगार्ड रख सकते हैं। रहते कितना साधारण हैं, समझाते भी हैं-मैं इन साधुओं आदि सबका बाप हूँ। जो भी शंकराचार्य आदि हैं, इन सबकी आत्माओं का मैं बाप हूँ। शरीरों के बाप जो हैं वह तो हैं ही, मैं हूँ सभी आत्माओं का बाप। मेरी सब पूजा करते हैं। अभी वह यहाँ सम्मुख बैठे हैं। परन्तु सभी समझते थोड़ेही हैं कि हम किसके सामने बैठे हैं। आत्मायें जन्म-जन्मान्तर से देह-अभिमान पर हिरी हुई हैं इसलिए बाप को याद नहीं कर सकते। देह को ही देखते हैं। देही-अभिमानी हों तो उस बाप को याद करें और बाप की श्रीमत पर चलें। बाप कहते हैं मुझे जानने के लिए सब पुरुषार्थी हैं। अन्त में पूरे देही-अभिमानी बनने वाले ही पास होंगे। बाकी सबमें जरा-जरा देह-अभिमान रहेगा। बाप तो है गुप्त। उनको कुछ भी दे नहीं सकते। बच्चियाँ शिव के मन्दिर में भी जाकर समझा सकती हैं। कुमारियों ने ही शिवबाबा का परिचय दिया है। हैं तो कुमार-कुमारियाँ दोनों जरूर। कुमारों ने भी परिचय दिया होगा। माताओं को खास उठाते हैं क्योंकि उन्होंने पुरूषों से जास्ती सर्विस की है। तो बच्चों को सर्विस का शौक होना चाहिए। जैसे उस पढ़ाई का भी शौक होता है ना। वह है जिस्मानी, यह है रूहानी। जिस्मानी पढ़ाई पढ़ेंगे, यह ड्रिल आदि सीखेंगे, मिलेगा कुछ भी नहीं। समझो, अभी किसको बच्चा जन्मता है तो धूमधाम से उनकी छठी आदि मनाते हैं, परन्तु वह पायेंगे क्या! इतना समय ही नहीं जो कुछ पा सके। यहाँ से भी जाकर जन्म लेते हैं परन्तु वह भी समझेंगे तो कुछ नहीं। यहाँ का बिछुड़ा हुआ होगा तो जो सीखकर गया होगा उसी अनुसार छोटेपन में ही शिवबाबा को याद करता होगा। यह तो मंत्र है ना। छोटे बच्चों को सिखलायेंगे, वह बिन्दु आदि तो कुछ समझेगा नहीं। सिर्फ शिवबाबा-शिवबाबा कहते रहेंगे। शिवबाबा को याद करो तो स्वर्ग का वर्सा पायेंगे। ऐसे उनको समझायेंगे तो वह भी स्वर्ग में आ जायेंगे। परन्तु ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। ऐसे बहुत बच्चे आते हैं, शिवबाबा-शिवबाबा कहते रहते हैं। फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। यह राजधानी स्थापन हो रही है। अब मनुष्य शिव की पूजा करते हैं, परन्तु जानते थोड़ेही हैं जैसे छोटा बच्चा शिव-शिव कहते हैं, समझते नहीं। यहाँ भी पूजा करते हैं परन्तु पहचान कुछ भी है नहीं। तो उनको बतलाना चाहिए, तुम जिसकी पूजा करते हो वही ज्ञान का सागर, गीता का भगवान है। वह हमको पढ़ा रहे हैं। इस दुनिया में और कोई मनुष्य नहीं जो कह सके कि शिवबाबा हमको राजयोग पढ़ा रहे हैं। यह सिर्फ तुम जानते हो सो भी भूल जाते हो। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। किसने कहा - भगवानुवाच, काम महाशत्रु है, इस पर जीत पहनो। पुरानी दुनिया का सन्यास करो। तुम हठयोगी हद के सन्यासी हो। वह है शंकराचार्य, यह है शिवाचार्य। वह हमको सिखलाते हैं। कृष्ण आचार्य नहीं कह सकते। वह तो छोटा बच्चा है। सतयुग में ज्ञान की दरकार नहीं रहती है।

जहाँ-जहाँ शिव के मन्दिर हैं, वहाँ तुम बच्चे बहुत अच्छी सेवा कर सकते हो। शिव के मन्दिरों में जाओ, माताओं का जाना अच्छा है, कन्यायें जायें तो उससे अच्छा है। अभी तो हमको बाबा से राज्य-भाग्य लेना है। बाप हमको पढ़ाते हैं फिर हम महाराजा-महारानी बनेंगे। ऊंच ते ऊंच बाप ही है, ऐसी शिक्षा कोई मनुष्य दे न सके। यह है ही कलियुग। सतयुग में था इनका राज्य। यह राजा-रानी कैसे बनें, किसने राजयोग सिखलाया, जो सतयुग के मालिक बनें? जिसकी तुम पूजा करते हो वह हमको पढ़ाकर सतयुग का मालिक बनाते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना..... पतित प्रवृत्ति मार्ग वाले ही पावन प्रवृत्ति मार्ग में जाते हैं। कहते भी हैं बाबा हम पतितों को पावन बनाओ। पावन बनाकर यह देवता बनाओ। वह है प्रवृत्ति मार्ग। निवृति मार्ग वालों का गुरू बनना ही नहीं है। जो पवित्र बनते हैं उनके गुरू बन सकते हैं। ऐसे बहुत कम्पेनि्यन भी होते हैं, विकार के लिए शादी नहीं करते हैं। तो तुम बच्चे ऐसी-ऐसी सर्विस कर सकते हो। अन्दर में शौक होना चाहिए। हम बाबा के सपूत बच्चे बन क्यों न जाकर सर्विस करेंगे। पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। अब शिवबाबा कहते हैं कृष्ण तो हो न सके। वह तो एक ही बार सतयुग में होगा। दूसरे जन्म में वही फीचर्स वही नाम थोड़ेही होगा। 84 जन्म में 84 फीचर्स। कृष्ण यह ज्ञान किसको सिखला न सके। वह कृष्ण कैसे यहाँ आयेंगे। अभी तुम इन बातों को समझते हो। आधाकल्प अच्छे जन्म होते हैं फिर रावण राज्य शुरू होता है। मनुष्य हूबहू जैसे जानवर मिसल बन जाते हैं। एक-दो में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। तो रावण का जन्म हुआ ना। बाकी 84 लाख जन्म तो हैं नहीं। इतनी वैराइटी है। जन्म थोड़ेही इतने लेते हैं। तो यह बाप बैठ समझाते हैं। वह है ऊंच ते ऊंच भगवान। वह पढ़ाते हैं, नैक्स्ट में फिर यह भी तो है ना। नही पढ़ेंगे तो किसी के पास जाकर दास-दासियाँ बनेंगे। क्या शिवबाबा के पास दास-दासी बनेंगे? बाप तो समझाते हैं पढ़ते नहीं हो तो जाकर सतयुग में दास-दासियाँ बनेंगे। जो कुछ भी सर्विस नहीं करते, खाया-पिया और सोया वह क्या बनेंगे! बुद्धि में आता तो है ना क्या बनेंगे! हम तो महाराजा बनेंगे। हमारे सामने भी नहीं आयेंगे। खुद भी समझते हैं-ऐसे हम बनेंगे। परन्तु फिर भी शर्म कहाँ है। हम अपनी उन्नति कर कुछ पा लेवें, समझते ही नहीं। तब बाबा कहते हैं ऐसे मत समझो यह ब्रह्मा कहते हैं, हमेशा शिवबाबा के लिए समझो। शिवबाबा का तो रिगार्ड रखना है ना। उनके साथ फिर धर्मराज भी है। नहीं तो धर्मराज के डन्डे भी बहुत खायेंगे। कुमारियों को तो बहुत होशियार होना चाहिए। ऐसे थोड़ेही यहाँ सुना, बाहर गये तो खलास। भक्ति मार्ग की कितनी सामग्री है। अब बाप कहते हैं विष छोड़ो। स्वर्गवासी बनो। ऐसे- ऐसे स्लोगन बनाओ। बहादुर शेरनियाँ बनो। बेहद का बाप मिला है फिर क्या परवाह। गवर्मेन्ट धर्म को ही नहीं मानती है तो वह फिर मनुष्य से देवता बनने कैसे आयेंगे। वह कहते हैं हम कोई भी धर्म को नहीं मानते। सबको हम एक समझते हैं फिर लड़ते-झगड़ते क्यों हैं? झूठ तो झूठ सच की रत्ती भी नहीं है। पहले-पहले ईश्वर सर्वव्यापी से ही झूठ शुरू होती है।

हिन्दू धर्म तो कोई है नहीं। क्रिश्चियन का अपना धर्म चला आता है। वह अपने को बदलते नहीं हैं। यह एक ही धर्म है जो अपने धर्म को बदल हिन्दू कह देते हैं और फिर नाम कैसे-कैसे रखते, श्री श्री फलाने...... अभी श्री अर्थात् श्रेष्ठ हैं कहाँ। श्रीमत भी किसी की नहीं। यह तो उन्हों की आइरन एजेड मत है। उनको श्रीमत कैसे कह सकते हैं। अभी तुम कुमारियाँ खड़ी हो जाओ तो कोई को भी समझा सकती हो। परन्तु योगयुक्त अच्छी होशियार बच्चियाँ चाहिए। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपनी उन्नति करने के लिए बाप की सर्विस में तत्पर रहना है। सिर्फ खाना, पीना, सोना, यह पद गँवाना है।

2) बाप का और पढ़ाई का रिगार्ड रखना है। देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। बाप की शिक्षाओं को धारण कर सपूत बच्चा बनना है।



वरदान:- स्व स्थिति द्वारा परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले संगमयुगी विजयी रत्न भव!   

परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने का साधन है स्व-स्थिति। यह देह भी पर है, स्व नहीं। स्व स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव कराता है और प्रकृति-धर्म अर्थात् पर धर्म या देह की स्मृति किसी न किसी प्रकार के दु:ख का अनुभव कराती है। तो जो सदा स्व स्थिति में रहता है वह सदा सुख का अनुभव करता है, उसके पास दु:ख की लहर आ नहीं सकती। वह संगमयुगी विजयी रत्न बन जाते हैं।

स्लोगन:- परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फोर्स समाप्त करो।   

 

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