Om Shanti
Om Shanti
कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

22-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन



22-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - इस बेहद के खेल में तुम आत्मा रूपी एक्टर पार्टधारी हो, तुम्हारा निवास स्थान है-स्वीट साइलेन्स होम, जहाँ अब जाना है”
प्रश्न:
जो ड्रामा के खेल को यथार्थ रीति जानते हैं, उनके मुख से कौन से शब्द नहीं निकल सकते हैं?
उत्तर:
यह ऐसा नहीं होता था तो ऐसे होता.... यह होना नहीं चाहिए - ऐसे शब्द ड्रामा के खेल को जानने वाले नहीं कहेंगे। तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा का खेल जूँ मिसल फिरता रहता है, जो कुछ होता है सब ड्रामा में नूंध है, कोई फिक्र की बात नहीं है।
ओम् शान्ति।
बाप जब अपना परिचय बच्चों को देते हैं तो बच्चों को अपना परिचय भी मिल जाता है। सब बच्चे बहुत समय देह-अभिमानी होकर रहते हैं। देही-अभिमानी हों तो बाप का यथार्थ परिचय हो। परन्तु ड्रामा में ऐसे है नहीं। भल कहते भी हैं भगवान गॉड फादर है, रचता है, परन्तु जानते नहीं हैं। शिवलिंग का चित्र भी है, परन्तु इतना बड़ा तो वह है नहीं। यथार्थ रीति न जानने के कारण बाप को भूल जाते हैं। बाप है भी रचता, जरूर रचेंगे भी नई दुनिया, तो जरूर हम बच्चों को नई दुनिया की राजधानी का वर्सा होना चाहिए। स्वर्ग का नाम भी भारत में मशहूर है, परन्तु समझते कुछ भी नहीं। कहते हैं फलाना मरा स्वर्ग पधारा। अब ऐसे कभी होता है क्या। अभी तुम समझते हो हम सब तुच्छ बुद्धि थे, नम्बरवार तो कहेंगे ना। मुख्य के लिए ही समझानी है कि मैं इनमें आता हूँ, बहुत जन्मों वाले अन्तिम शरीर में। यह है नम्बरवन। बच्चे समझते हैं अभी हम उनके बच्चे ब्राह्मण बन गये। यह सब हैं समझ की बातें। बाप इतने समय से समझाते ही रहते हैं। नहीं तो सेकण्ड की बात है बाप को पहचानना। बाप कहते हैं मुझे याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। निश्चय हो गया फिर कोई भी बात में प्रश्न आदि उठ नहीं सकता। बाप ने समझाया है-तुम पावन थे जब शान्तिधाम में थे। यह बातें भी तुम ही बाप द्वारा सुनते हो। दूसरा कोई सुना न सके। तुम जानते हो हम आत्मायें कहाँ की रहवासी हैं। जैसे नाटक के एक्टर्स कहेंगे हम यहाँ के रहवासी हैं, कपड़ा बदलकर स्टेज पर आ जायेंगे। अभी तुम समझते हो हम यहाँ के रहवासी नहीं है। यह एक नाटकशाला है। यह अभी बुद्धि में आया है कि हम मूलवतन के निवासी हैं, जिसको स्वीट साइलेन्स होम कहा जाता है। इसके लिए ही सब चाहते हैं क्योंकि आत्मा दु:खी है ना। तो कहते हैं हम कैसे वापिस घर जायें। घर का पता न होने के कारण भटकते हैं। अभी तुम भटकने से छूटे। बच्चों को मालूम पड़ गया है, अभी तुमको सचमुच घर जाना है। अहम् आत्मा कितनी छोटी बिन्दी हैं। यह भी वन्डर है जिसको कुदरत कहा जाता है। इतनी छोटी बिन्दी में इतना पार्ट भरा हुआ है। परमपिता परमात्मा कैसे पार्ट बजाते हैं, यह भी तुम जान गये हो। सबसे मुख्य पार्टधारी वह है, करनकरावनहार है ना। तुम मीठे-मीठे बच्चों को यह अभी समझ में आया है कि हम आत्मायें शान्तिधाम से आती हैं। आत्मायें कोई नई थोड़ेही निकलती हैं, जो शरीर में प्रवेश करती हैं। नहीं। आत्मायें सभी स्वीट होम में रहती हैं। वहाँ से आती हैं पार्ट बजाने। सभी को पार्ट बजाना है। यह खेल है। यह सूर्य, चांद, स्टॉर्स आदि क्या हैं! यह सब बत्तियां हैं। जिसमें रात और दिन का खेल चलता है। कई कहते हैं सूर्य देवताए नम:, चन्द्रमा देवताए नम: . . . परन्तु वास्तव में यह कोई देवतायें हैं नहीं। इस खेल का किसको मालूम नहीं है। सूर्य चांद को भी देवता कह देते हैं। वास्तव में यह इस सारे विश्व नाटक के लिए बत्तियां हैं। हम रहवासी हैं स्वीट साइलेन्स होम के। यहाँ हम पार्ट बजा रहे हैं, यह जूँ मिसल चक्र फिरता रहता है, जो कुछ होता है ड्रामा में नूँध है। ऐसे नहीं कहना चाहिए कि ऐसे नहीं होता था तो ऐसे होता। यह तो ड्रामा है ना। मिसला जैसे तुम्हारी माँ थी, ख्याल में तो नहीं था ना कि चली जायेगी। अच्छा, शरीर छोड़ दिया - ड्रामा। अब अपना नया पार्ट बजा रही है। फिक्र की कोई बात नहीं। यहाँ तुम सब बच्चों की बुद्धि में है हम एक्टर्स हैं, यह हार और जीत का खेल है। यह हार-जीत का खेल माया पर आधारित है। माया से हारे हार है और माया से जीते जीत। यह गाते तो सब हैं परन्तु बुद्धि में ज्ञान जरा भी नहीं है। तुम जानते हो माया क्या चीज़ है, यह तो रावण है, जिसको ही माया कहा जाता है। धन को सम्पत्ति कहा जाता। धन को माया नहीं कहेंगे। मनुष्य समझते हैं इनके पास बहुत धन है। तो कह देते माया का नशा है। लेकिन माया का नशा होता है क्या! माया को तो हम जीतने की कोशिश करते हैं। तो इसमें कोई भी बात में संशय नहीं उठना चाहिए। कच्ची अवस्था होने के कारण ही संशय उठता है। अभी भगवानुवाच है-किसके प्रति? आत्माओं के प्रति। भगवान तो जरूर शिव ही चाहिए जो आत्माओं प्रति कहे। कृष्ण तो देहधारी है। वह आत्माओं प्रति कैसे कहेंगे। तुमको कोई देहधारी ज्ञान नहीं सुनाते हैं। बाप को तो देह है नहीं। और तो सबको देह है, जिनकी पूजा करते हैं उनको याद करना तो सहज है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को कहेंगे देवता। शिव को भगवान कहते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान, उनको देह है नहीं। यह भी तुम जानते हो जब मूलवतन में आत्माएं थी तो तुमको देह थी? नहीं। तुम आत्मायें थी। यह बाबा भी आत्मा है। सिर्फ वह प्ारम है, इनका पार्ट गाया हुआ है। पार्ट बजाकर गये हैं, तब ही पूजा होती है। परन्तु एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह मालूम हो-5 ह॰जार वर्ष पहले भी परमपिता परमात्मा रचता आया था, वह है ही हेविनली गॉड फादर। हर 5 ह॰जार वर्ष बाद कल्प के संगम पर वह आते हैं, परन्तु कल्प की आयु लम्बी-चौड़ी कर देने से सब भूल गये हैं। तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं, तुम खुद कहते हो बाबा हम आपसे कल्प-कल्प मिलते हैं और आपसे वर्सा लेते हैं, फिर कैसे गँवाते हैं - यह बुद्धि में है। ज्ञान तो अनेक प्रकार के हैं परन्तु ज्ञान का सागर भगवान को ही कहा जाता है। अब यह भी सब समझते हैं-विनाश होगा जरूर। आगे भी विनाश हुआ था। कैसे हुआ था-यह किसको भी पता नहीं है। शास्त्रों में तो विनाश के बारे में क्या-क्या लिख दिया है। पाण्डव और कौरवों की युद्ध कैसे हो सकती!

अभी तुम ब्राह्मण हो संगमयुग पर। ब्राह्मणों की तो कोई लड़ाई है नहीं। बाप कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो नानवायोलेन्स, डबल आहिंसक। अभी तुम निर्विकारी बन रहे हो। तुम ही बाप से कल्प-कल्प वर्सा लेते हो। इसमें कुछ भी तकलीफ की बात नहीं। नॉलेज बड़ी सहज है। 84 जन्मों का चक्र तुम्हारी बुद्धि में है। अभी नाटक पूरा होता है, बाकी थोड़ा टाइम है। तुम जानते हो-अभी ऐसा समय आने वाला है जो साहूकारों को भी अनाज नहीं मिलेगा, पानी नहीं मिलेगा। इसको कहा जाता है दु:ख के पहाड़, खूने नाहेक खेल है ना। इतने सब खत्म हो जायेंगे। कोई भूल करते हैं तो उनको दण्ड मिलता है, इन्होंने क्या भूल की है? सिर्फ एक ही भूल की है, जो बाप को भूले हैं। तुम तो बाप से राजाई ले रहे हो। बाकी मनुष्य तो समझते हैं मरे कि मरे। महाभारत लड़ाई थोड़ी भी शुरू हुई तो मर जायेंगे। तुम तो जीते हो ना। तुम ट्रांसफर होकर अमरलोक में जाते हो, इस पढ़ाई की ताकत से। पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है। शास्त्रों की भी पढ़ाई है, उससे भी इनकम होती है, परन्तु वह पढ़ाई है भक्ति की। अब बाप कहते हैं मैं तुमको इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाता हूँ। तुम अभी स्वच्छ बुद्धि बनते हो। तुम जानते हो हम ऊंच ते ऊंच बनते हैं, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते हैं। नये से पुराना होता है। सीढ़ी जरूर उतरनी पड़े ना। अभी सृष्टि की भी उतरती कला है। चढ़ती कला थी तो इन देवताओं का राज्य था, स्वर्ग था। अभी नर्क है। अभी तुम फिर से पुरूषार्थ कर रहे हो-स्वर्गवासी बनने के लिए। बाबा-बाबा करते रहते हो।
ओ गॉड फादर कह पुकारते हैं परन्तु यह थोड़ेही समझते कि वह आत्माओं का बाप ऊंच ते ऊंच है, हम उनके बच्चे फिर दु:खी क्यों? अभी तुम समझते हो दु:खी भी होना ही है। यह सुख और दु:ख का खेल है ना। जीत में सुख है, हार में दु:ख है। बाप ने राज्य दिया, रावण ने छीन लिया। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है-बाप से हमको स्वर्ग का वर्सा मिलता रहता है। बाप आया हुआ है, अभी सिर्फ बाप को याद करना है तो पाप कट जायें। जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा है ना। यह भी तुम जानते हो, तुम कोई बहुत दु:खी नहीं होते हो। कुछ सुख भी है-आटे में नमक। जिसको काग विष्टा समान सुख कहा जाता है। तुम जानते हो सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। जगत का गुरू भी एक ठहरा। वानप्रस्थ में गुरू किया जाता है। अभी तो छोटे को भी गुरू करा देते कि अगर मर जाये तो सद्गति को पायेंगे। बाप कहते हैं वास्तव में किसको भी गुरू नहीं कह सकते। गुरू वह जो सद्गति दे। सद्गति दाता तो एक ही है। बाकी क्राइस्ट, बुद्ध आदि कोई भी गुरू नहीं। वे आते हैं तो सबको सद्गति मिलती है क्या! क्राइस्ट आया, उनके पीछे सब आने लगे। जो भी उस धर्म के थे। फिर उनको गुरू कैसे कहेंगे, जबकि ले आने लिए निमित्त बने हैं। पतित-पावन एक ही बाप को कहते हैं, वह सबको वापिस ले जाने वाला है। स्थापना भी करते हैं, सिर्फ सबको ले जायें तो प्रलय हो जाये। प्रलय तो होती नहीं। सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमद् भगवत गीता गाई हुई है। गायन है-यदा यदाहि.......। भारत में ही बाप आते हैं। स्वर्ग की बादशाही देने वाला बाप है उनको भी सर्वव्यापी कह देते हैं। अभी तुम बच्चों को खुशी है कि नई दुनिया में सारे विश्व पर एक हमारा ही राज्य होगा। उस राज्य को कोई छीन नहीं सकता। यहाँ तो टुकड़े-टुकड़े पर आपस में कितना लड़ते रहते हैं। तुमको तो मज़ा है। खग्गियाँ मारनी है। कल्प-कल्प बाबा से हम वर्सा लेते हैं तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं मुझे याद करो फिर भी भूल जाते हैं। कहते हैं-बाबा योग टूट जाता है। बाबा ने कहा है योग अक्षर निकाल दो। वह तो शास्त्रों का अक्षर है।
बाप कहते हैं-मुझे याद करो। योग भक्ति मार्ग का अक्षर है। बाप से बादशाही मिलती है स्वर्ग की, उनको तुम याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश कैसे होंगे। राजाई कैसे मिलेगी। याद नहीं करेंगे तो पद भी कम हो पड़ेगा, सज़ा भी खायेंगे। यह भी अक्ल नहीं है। इतने बेसमझ बन पड़े हैं। मैं कल्प-कल्प तुमको कहता हूँ-मामेकम् याद करो। जीते जी इस दुनिया से मर जाओ। बाप की याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम विजय माला का दाना बन जायेंगे। कितना सहज है। ऊंच ते ऊंच शिवबाबा और ब्रह्मा दोनों हाइएस्ट हैं। वो पारलौकिक और यह अलौकिक। बिल्कुल साधारण टीचर है। वह टीचर्स फिर भी सज़ा देते हैं, यह तो पुचकार देते रहते हैं। कहते हैं-मीठे बच्चे, बाप को याद करो, सतोप्रधान बनना है। पतित-पावन एक ही बाप है। गुरू भी वही ठहरा और कोई गुरू हो न सके। कहते हैं बुद्ध पार निर्वाण गया-यह सब गपोड़ा है। एक भी वापिस जा न सके। सबका ड्रामा में पार्ट है। कितनी विशाल बुद्धि और खुशी रहनी चाहिए। ऊपर से लेकर सारा ज्ञान बुद्धि में है। ब्राह्मण ही ज्ञान उठाते हैं। न शूद्रों में, न देवताओं में यह ज्ञान है। अब समझने वाला समझे। जो न समझे उनका मौत है। पद भी कम हो जायेगा। स्कूल में भी नहीं पढ़ते हैं तो पद कम हो जाता है। अल्फ बाबा, बे बादशाही। हम फिर से अपनी राजधानी में जा रहे हैं। यह पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप हमें ऐसे नये विश्व की राजाई देते हैं जिसे कोई भी छीन नहीं सकता-इस खुशी में खग्गियाँ मारनी हैं।
2) विजय माला का दाना बनने के लिए जीते जी इस पुरानी दुनिया से मरना है। बाप की याद से विकर्म विनाश करने है।


वरदान:
प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाले सदा शुभ चिंतक और स्व चिंतक भव!
सेवा में सफलता का आधार है शुभ चिंतक वृत्ति क्योंकि आपकी यह वृत्ति आत्माओं की ग्रहण शक्ति वा जिज्ञासा को बढ़ाती है। इससे वाणी की सेवा सहज सफल हो जाती है। और स्व के प्रति स्व चिंतन करने वाली स्वचिंतक आत्मा सदा माया प्रूफ, किसी की भी कमजोरियों को ग्रहण करने से, व्यक्ति व वैभव की आकर्षण से प्रूफ हो जाती है। तो जब यह दोनों वरदान प्रैक्टिकल जीवन में लाओ तब प्रत्यक्षता का समय समीप आये।
स्लोगन:
अपने संकल्पों को भी अर्पण कर दो तो सर्व कमजोरियां स्वत: दूर हो जायेंगी

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